Das Mahavidya Stotra/दस महाविद्या स्तोत्र
Das Mahavidya Stotra (दस महाविद्या स्तोत्र) : The ten objects of transcendental knowledge are known as Das Maha Vidya. Each of these objects has been symbolised as a female deity or Goddess in the Hindu tradition of worship,. In truth, these Goddesses simply represent the cycle of time and life and the cosmic energies which ebb and flow through our lives and the cosmos.
These ten energies contain all wisdom, all potential – past present and future. Cosmic graphical representations of each of these Powerful Goddesses or Powers of Nature are called Yantras or mystic designs. Each is unique in its Shakti (Force) and is capable of bestowing its inherent Power on those who meditate and focus on the representative designs. By meditating on the ten Goddesses or their geometric shapes, it is said that each Goddess blesses the worshipper with her gifts as per Her Energy.
By meditating on this Goddess you will intuitively experience the meaning of time and the fact that time itself is the devourer of all. Time is the medium within which all things are born and die. Therefore Das Mahavidya Stotra bestows on the meditator fearlessness, conquest of time and death and immortality. Those who choose to worship this Yantra, are disassociated from the world and as such need to consider their responsibilities in the traditional sense before endeavouring to connect with its Power.
In Tantra, worship of Devi-Shakti is referred to as a Vidya. Of the hundreds of tantric practices, the worship of the ten major Devis is called the Das Mahavidya. These major forms of the goddess are described in the Todala Tantra. They are Kali, Tara, Maha Tripura Sundari (or Shodhashi-Sri Vidya), Bhuvaneshwari, Chinnamasta, Bhairavi, Dhumavati, Bagalamukhi, Matangi, and Kamala. These ten aspects of Shakti are the epitome of the entire creation.
श्री शिव उवाच –
दुर्लभं तारिणीमार्गं दुर्लभं तारिणीपदम् ।
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥
तव प्रसादाद्देवेशि! सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः ॥
श्री शिव ने कहा –
तारिणी का मार्ग दुर्लभ है । तारिणी का पद-युगल दुर्लभ है। मन्त्रार्थ, मन्त्र चैतन्य एवं शव-साधन दुर्लभ है ।
श्मशानसिद्धि, योनिसिद्धि, ब्रह्मसिद्धि, क्रियासिद्धि, भक्तिसिद्धि, मुक्तिसिद्धि-हे देवेशि! आपके अनुग्रह से समस्त सिद्धियाँ सिद्ध होती है ।
दशमहाविद्यास्तोत्रम्
ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥ १॥
हे चण्डि ! हे चण्डिके ! हे चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि ! आपको नमस्कार । हे कालि ! हे कालिके! हे महाभय-विनाशिनि ! आपको नमस्कार ।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ २॥
हे शिवे ! हे जगद्धात्रि ! मेरी रक्षा करें । हे हरवल्लभे ! प्रसन्न होवें । मैं जगत्-पालन-कारिणी जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ ।
जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ ३॥
मैं जगत्-मोक्षकरी, जगत्-सृष्टि-कारिणी, कराला, विकटा, घोरा एवं मुण्डमालाविभूषिता विद्या को प्रणाम करता हूँ ।
हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥ ४॥
मैं हरार्चिता, हराराध्या, हरवल्लभा को प्रणाम करता हूँ। मैं गुरुप्रिया, गौरवर्णा एवं अलङ्कारभूषिता गौरी को प्रणाम करता हूँ ।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥ ५॥
मैं ब्रह्म-पूजिता हरिप्रिया महामाया को प्रणाम करता हूँ । सिद्ध एवं विद्याधरगणों से परिवृता सिद्धा सिद्धेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ६॥
मैं मन्त्र-सिद्धि-प्रदायिनी, योनि-सिद्धिप्रदा, सिद्ध-शोभिता, दुर्गतिनाशिनी महामाया दुर्गा को प्रणाम करता हूँ ।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥ ७॥
मैं उग्रा, उग्रमयी, उग्रगणों से परिवृता, नीला, नीलघन (कृष्णमेघ) श्यामा, नील सुन्दरी उग्रतारा को प्रणाम करता हूँ ।
श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥ ८॥
मैं श्यामाङ्गी, श्यामघटिता, श्यामवर्ण-विभूषिता, सर्वार्थ-साधिनी, जगद्धात्री गौरी को प्रणाम करता हूँ ।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥ ९॥
मैं आद्यागुरु के आद्या, आद्यानाथ के द्वारा ‘प्रपूजिता‘, महाघोरा, घोरनादिनी, विकटा, विश्वेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।
श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥ १०॥
मैं श्री दुर्गा, धनदा, अन्नपूर्णा पद्मा एवं सुरेश्वरी को तथा चन्द्रशेखर-वल्लभा जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ ।
त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ ११॥
मैं शिवदूती, शिवाराध्या, शिवध्येया, सनातनी, त्रिपुरासुन्दरी को एवं अबलागणों से परिवृता बाला को प्रणाम करता हूँ।
सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥ १२॥
मैं विष्णुपूज्या ब्रह्मा, विष्णु एवं हर की प्रिया, समस्त शिवागणों से विभूषित, सुन्दरी, नारायणी, तारिणी को प्रणाम करता हूँ ।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥ १३॥
मैं सर्वसिद्धिप्रदा, अनित्यगुणवर्जिता, सगुणा एवं निर्गुणा, ध्येया एवं अर्चिता, सर्वसिद्धिदा, नित्या को प्रणाम करता हूँ ।
विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥ १४॥
मैं विद्यासिद्धिप्रदा, महाकाल-प्रपूजिता, महेशभक्ता, माहेशी विद्या एवं महाविद्या महेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥ १५॥
मैं रक्तप्रिया, रक्तवर्णा, रक्तबीज-विमर्दिनी, शुम्भासुर-विनाशिनी, जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ।
भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥ १६॥
मैं चतुर्भुजा, अष्टादशभुजा, शुभा, लोलजिह्वा, भैरवी, सुरेश्वरी, भुवना, भुवनेश्वरी देवी को प्रणाम करता हूँ ।
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥ १७॥
मैं अट्टहासा, अट्टहासप्रिया, धूम्रलोचन-विनाशिनी, विश्वनाथप्रिया, शिवा, विश्वेश्वरी, त्रिपुरेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।
कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥ १८॥
मैं कमला, छिन्नमस्ता, मातङ्गी, सुरसुन्दरी, षोडशी, त्रिपुरा, भीमा धूमावती एवं बगलामुखी को मन्त्रसिद्धि के लिए प्रणाम करता हूँ ।
सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥ १९॥
मैं समस्त विद्या एवं मन्त्रों के लिए शुद्धि-कारिणी, सभी के सारभूता, सर्वसिद्धिप्रदा, जगत् तारा को मन्त्रसिद्धि के लिए प्रणाम करता हूँ ।
दशमहाविद्यास्तोत्रम् अथवा महाविद्यास्तोत्रम् फलश्रुति
इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ २०॥
हे वरारोहे ! हे गिरिनन्दिनि ! सिद्धिकार श्रेष्ठ – एवं विध स्तोत्र को पढ़कर (साधक) मोक्षलाभ करता है। यह सत्य है ।
कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥२१॥
मंगलवार, बृहस्पतिवार या शुक्रवार को, निशा के आगत होने पर, चतुर्दशी या अमावस्या तिथि में, इस स्तोत्र का पाठ कर (साधक) मोक्षलाभ करता है ।
त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धि स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।
चतुर्दश्यां निशाभागे निशि भौमेऽष्टमीदिने ॥२२ ॥
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि तन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तवपाठाद्भुजङ्गिनी ॥ २३ ॥
हे शङ्करि ! तीन पक्ष पर्यन्त स्तोत्र का पाठ करने पर निश्चय ही मन्त्रसिद्धि होती है।
शनिवार या मंगलवार को, चतुर्दशी की रात्रि में या निशा-मुख में स्तोत्र का पाठ करें। वैसा करने पर, मन्त्रसिद्धि का लाभ करते हैं।
केवल स्तोत्रपाठ से अति उत्तम मन्त्रसिद्धि हो सकती है ।
हे चण्डि ! स्तव-पाठ के द्वारा सर्वदा भुजङ्गिनी (कुलकुण्डलिनी) जागरिता हो जाती हैं ।
इति मुण्डमालातन्त्रोक्त दशमः पटलान्तर्गतं दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥